कोरोना के कारण आठ महीने विदेश में फसी रही, न फोन, न पैसे, और आज बनी है विश्व चैंपियन जुडोका, जानिए लिन्थोई चनंबम के संघर्ष की पूरी कहानी

अपनी साथी के साथ फसी लिन्थोई के पास फोन तक नही था लिन्थोई चनंबम को पता भी नहीं था कि वह कब अपने देश वापस लौट पाएंगीं। जिसके बाद उनकी मुलाकात होती है मामुका किजिलाशविली से

Update: 2022-08-27 09:34 GMT

कोविड 19 के कारण पूरी तैयारी के बाद जॉर्जिया की राजधानी त्बिलिसी में निलंबित हुए जूडो इंटरनेशनल ग्रैंड प्रिक्स में लॉकडाउन में फंसी लिन्थोई चनंबम के वापस आने के भी पैसे नही थे।

अपनी साथी के साथ फसी लिन्थोई के पास फोन तक नही था लिन्थोई चनंबम को पता भी नहीं था कि वह कब अपने देश वापस लौट पाएंगीं। जिसके बाद उनकी मुलाकात होती है मामुका किजिलाशविली से, किजिलाशविली जॉर्जिया के टॉप जूडो कोच में गिने जाते हैं। उन्होंने न सिर्फ भारतीय खिलाड़ियों के लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए बल्कि ट्रेनिंग भी दी। उन्होंने काम खोजने में भी भारतीय खिलाड़ियों की मदद की। कोविड महामारी के कारण लिन्थोई चनंबम 8 महीने जॉर्जिया में रहीं।

अब उसी लिन्थोई चनंबम ने 2022 में इतिहास रच दिया हैं। लिन्थोई ने बोस्निया-हर्जेगोविना के साराजेवो में विश्व कैडेट जूडो चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत लिया है। इसी के साथ वह किसी भी आयु वर्ग में वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली भारत की पहली जुडोका हैं। 57 किग्रा कैटेगरी के फाइनल मुकाबले में उन्होंने मणिपुर की चनंबम ने ब्राजील की बियांका रेस को मात दी।

इससे पहले 2021 में हुए नेशनल कैडेट जूडो चैंपियनशिप में उन्होंने अपने नाम स्वर्ण पदक किया था। 2022 एशियाई कैडेट और जूडो जूनियर चैंपियनशिप में भी वह स्वर्ण जीत चुकी हैं। इसके अलावा एशिया-ओशिनिया कैडेट जूडो चैंपियनशिप में उन्हें कांस्य पदक मिला था।

बता दें मणिपुर के इंफाल में में लिन्थोई का जन्म किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता के साथ ही चाचा को खेल से काफी प्यार था। इसी वजह से शुरुआत से ही उन्हें खेल के लिए प्रेरित किया गया था। एक इंटरव्यू में लिन्थोई ने बताया था कि उनके साथ घर पर लड़के जैसा ही व्यहार होता था।

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