एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली दिव्यांग महिला 'अरुणिमा सिन्हा'

Update: 2019-12-02 11:49 GMT

अरे, पैरों से चलकर मंजिल मिलती होती तो अरबों लोग अपनी मंजिलों पर पहुंच गए होते, यह तो हौसला होता है जो आपको कहीं भी पंहुचा देता है। जैसे मैं आज यहां पर हूं सफेद बर्फ से ढकी पहाड़ियों और स्वच्छ नीले आकाश के नीचे, जय बजरंगबली..! यह बोल हैं अरुणिमा सिन्हा के जो 21 मई 2013 को एवरेस्ट की चोटी फतह करने वाली विश्व की पहली महिला विकलांग पर्वतारोही बन गईं।

विकलांगता शारीरिक नहीं होती है, अगर आप मानसिक रूप से मजबूत हो तो। इस बात को सिद्ध करके दिखाया है एवरेस्ट फतेह कर चुकी अरुणिमा सिन्हा ने। कृत्रिम पैरों के बूते उन्होंने 8848 मी ऊंचाई तय की और सबसे विषम चुनौतियों में से एक एवरेस्ट की चढाई की। कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट (एशिया) फतह करने वाली दुनिया की एकमात्र महिला अरुणिमा अब तक किलीमंजारो (अफ्रीका), एल्ब्रूस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया), किजाश्को (ऑस्ट्रेलिया) और माउंट अंककागुआ (दक्षिण अमेरिका) पर्वत चोटियों को फतह कर चुकी हैं। इसके अलावा वह माउंट विन्सन (अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी ) पर चढ़ाई करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला भी बनी।

अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन पर अरुणिमा

अरुणिमा सिन्हा राष्ट्रीय स्तर की पूर्व बास्केटबॉल खिलाड़ी रह चुकी हैं। उनके साथ 11 अप्रैल 2011 की रात एक दुर्घटना ऐसी घटी जिससे उनका जीवन बदल गया। वह ट्रैन से यात्रा कर रही थी, उनके साथ लूटपाट की घटना हुई। इस घटना में उन्हें ट्रैन से बाहर फेंक दिया गया। दुर्भाग्य से उनका बायां पैर कट गया और दायां पैर बुरी तरह जख्मी हो गया। अरुणिमा ने पूरी रात ट्रैक पर ही बिताई। सुबह घटनास्थल के नजदीकी गांव के लोगों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। उनके दायें पैर में लोहे की छड़ लगानी पड़ी जबकि बायां पैर काटकर प्रोस्थेटिक पैर लगाया गया।

जिंदगी और मौत के बीच झूलते हुए वे नई दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में चार महीने तक भर्ती रहीं। जब अरुणिमा अस्पताल में अपना इलाज करवा रही थी तब उन्होंने एवरेस्ट फतेह करने की योजना तैयार की। कटा हुआ बायां पैर, दाएं पैर की हड्डियों में पड़ी लोहे की छड़ के बावजूद उनकी यह सोच अपने आप में एक रोमांच थी। कटे हुए पैर के विकल्प में उन्होंने कृत्रिम पैर लगवाया। उनकी हालत में सामान्य सा सुधार ही हुआ कि उन्होंने बछेंद्री पाल से मिलकर अपने सपने की बात कही। बछेंद्री पाल की मदद से उन्होंने एवरेस्ट की चढाई के लिए ट्रैनिग की। अपने दृढ़ संकल्प के बूते उन्होंने एवरेस्ट पर तिरंगा फेहरा दिया। अरुणिमा ने एवरेस्ट फ़तेह किया और दुनिया को दिखा दिया कि विकलांगता शारीरिक नहीं होती।

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