मेजर ध्यानचंद के बारे में दस ऐसी रोचक बातें जो सबको जाननी चाहिए

Update: 2019-12-03 10:57 GMT

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज(इलाहबाद) में हुआ। उन्होंने अपने करिश्माई खेल से एक अलग पहचान बनाई। उनका जन्मदिन भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन 1979 में दिल्ली में उनका निधन हो गया। आज उनकी पुण्यतिथि है इस अवसर पर उनसे जुड़ी 10 ऐसी बातें जो सबको जाननी चाहिए।

1- एमस्टर्डम में खेल गए 1928 ओलंपिक में उन्होंने सर्वाधिक 14 गोल किये। जिसके बाद एक न्यूजपेपर में लिखा गया, "यह हॉकी का खेल नहीं है, बल्कि जादू है। ध्यानचंद वास्तव में हॉकी के जादूगर हैं।"

2- 1932 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत ने यूएसए को 24-1 और जापान को 11-1 से हराया। इस दौरान ध्यानचंद ने 12 गोल किए जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल किये। दोनों भाइयों ने मिलकर 35 में से 25 गोल किये।

3- एक बार ध्यानचंद एक मैच में गोल नहीं कर पाए तो उन्होंने गोल पोस्ट के बारे में मैच रेफरी से बहस की। जब गोल पोस्ट की जाँच की गई तो वह छोटा पाया गया। उसकी चौड़ाई अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर कम थी। ध्यानचंद का गोल पोस्ट को लेकर यह अनुमान सही था। सब लोग ध्यानचंद की खेल को लेकर समझ को देखकर चौंक गये।

4- ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया और तीनों में भारत ने स्वर्ण पदक जीता।

5-ऐसा कहा जाता है कि ध्यानचंद के जादू से तत्कालीन जर्मन चांसलर एडोल्फ हिटलर भी अछूते नहीं रहे थे। बर्लिन ओलंपिक 1936 में उन्होंने ध्यानचंद को जर्मनी से खेलने की पेशकश की, जिसे ध्यानचंद ने मना कर दिया।

6-ध्यानचंद ने अपने करियर में 400 से ज्यादा गोल किये।

7- जब ध्यानचंद खेलते थे तब उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि गेंद उनकी हॉकी स्टिक की ओर अपने-आप ही चली आती है। नीदरलैंड में हॉकी अधिकारियों ने एक बार उनकी हॉकी स्टिक को यह जांचने के लिए तोड़ दिया कि क्या उसके अंदर चुंबक तो नहीं है।

8-ऑस्ट्रेलियाई के महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन ने 1935 में एडिलेड में ध्यानचंद से मुलाकात की। उन्हें खेलते हुए देखने के बाद ब्रैडमैन ने टिप्पणी की, "वह हॉकी में इस तरह से गोल करते हैं कि मानो वह क्रिकेट में रन बना रहे हो।"

9-ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था। वह रात को हॉकी का अभ्यास किया करते थे। उनके साथी खिलाड़ियों ने उन्हें चाँद कहना शुरू किया जो बाद में ध्यानचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

10- यूँ तो ध्यानचंद ने कई मैचों में यादगार प्रदर्शन किया है, लेकिन उन्होंने अपने पसंदीदा मैच के बारे में बताते हुए कहा, "अगर किसी ने मुझसे पूछा कि मैं कौन सा सबसे अच्छा मैच था, जिसमें मैं बेझिझक कहूंगा यह कलकत्ता कस्टम्स और झांसी हीरोज के बीच 1933 का बैटन कप फाइनल था।"

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