Hockey World Cup: बिरसा मुंडा हॉकी स्टेडियम, जानिए क्या है खासियत

इस स्टेडियम का निर्माण कोरोना काल में 15 महीनों के अंदर कर लिया गया

Update: 2023-01-12 07:40 GMT

 हॉकी विश्व कप के लिए ओढि़शा के राऊरकेला में नया स्टेडियम बना है। करीब 15 एकड़ की ज़मीन पर इस स्टेडियम का निर्माण कोरोना काल में 15 महीनों के अंदर कर लिया गया। इसमें एक सुरंग बनाई गई है जो ड्रेसिंग रूम और स्टेडियम परिसर के भीतर बनी प्रैक्टिस पिच को जोड़ती है। प्रैक्टिस पिच के आसपास ही एक अलग फिटनेस सेंटर और हाइड्रोथेरेपी पूल बनाया गया है। बिरसा मुंडा स्टेडियम दुनिया का चौथा सबसे बड़ा स्टेडियम है। इसे स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के नाम से बनाया गया है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कलिंगा स्टेडियम में पांच दिसंबर को हॉकी विश्व कप के लिए ट्रॉफ़ी का उद्घाटन किया। 

बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम, ओडिशा

क्षमता : 20,000 से अधिक

लागत : 120 करोड़ रुपए

मुकाबले : हॉकी विश्व कप के 20 (क्लासिफिकेशन मैच)

400 खिलाडिय़ों और अधिकारियों के रहने के लिए 225 कमरों की व्यवस्था।

प्रमुख इवैंट

2023 एफआईएच हॉकी पुरुष  विश्व कप (13-29 जनवरी)

2023 एफआईएच पुरुष प्रो लीग (10-15 मार्च)

स्टील शहर राऊरकेला में बने बिरसा मुंडा स्टेडियम को 120 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है। भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम के साथ बिरसा मुंडा में हॉकी विश्व कप के मैच होने हैं। बिरसा मुंडा में विश्व कप के 44 में से 20 मुकाबले होने हैं।

विश्व के सबसे बड़े हॉकी स्टेडियम

स्टेडियम-क्षमता-शहर

1. नैशनल हॉकी स्टेडियम 45,000 लाहौर, पाकिस्तान

2. चंडीगढ़ हॉकी स्टेडियम 30,000 चंडीगढ़, भारत

3. वेइंगर्ट स्टेडियम 22,355 लॉस एंजिल्स, यूएसए

4. बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम 20,000+, ओडिशा, भारत 

विश्व के सबसे बड़े हॉकी स्टेडियम में पहले नंबर पर है लाहौर का नैशनल हॉकी स्टेडियम। इसके बाद चंडीगढ़ हॉकी स्टेडियम फिर लॉस एंजिल्स का वेइंगर्ट स्टेडियम और चौथे नंबर पर राऊरकेला का बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम आता है जिसमें 20 हजार से ज्यादा दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। 

कौन थे बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा एक युवा स्वतंत्रता सेनानी और एक आदिवासी नेता थे। उन्‍हें 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्‍त विद्रोह के लिए याद किया जाता और। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासक और आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के मिशनरियों के प्रयासों के बारे में जानने के बाद, उन्‍होंने 'बिरसैत' की आस्था शुरू की।

जल्द ही मुंडा और उरांव समुदाय के सदस्य बिरसैत संप्रदाय में शामिल होने लगे और यह ब्रिटिश धर्मांतरण की राह में चुनौती बन गया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए थे। बिरसा के नाम पर कई यूनिवर्सिटीज, एथलैटिक्स स्टेडियम, एयरपोर्ट और समाज सेवी संस्थाएं भी हैं। 

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