पी वी सिंधु के वर्ल्ड चैंपियन बनने से भारत को क्या मिलेगा ?

Update: 2019-08-26 08:38 GMT

रविवार का दिन भारतीय खेल इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, जब विश्व तीरंदाज़ी चैंपियनशिप में कोमलिका बारी ने भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। फिर देर रात वेस्टइंडीज़ को पहले टेस्ट मैच में 318 रनों से शिकस्त देते हुए भारतीय क्रिकेट टीम ने कैरेबियाई सरज़मीं पर सबसे बड़ी जीत दर्ज की। लेकिन इन सबके बीच शाम में कुछ ऐसा हुआ जो आज तक भारतीय खेल इतिहास में नहीं हुआ था। स्विट्ज़रलैंड में पी वी सिंधु ने जापान की नोज़ोमी ओकुहारा को शिकस्त देकर वर्ल्ड चैंपियन बन गईं थी।

ये ख़ास है, क्योंकि पी वी सिंधु वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप का ख़िताब जीतने वाली सिर्फ़ पहली महिला ही नहीं बल्कि पहली भारतीय भी हैं। जी हां, 1977 से शुरू हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में आज तक किसी भी भारतीय शटलर ने गोल्ड मेडल नहीं जीता था। यही वजह है पी वी सिंधु का ये कारनामा बेहद ख़ास है और बैडमिंटन प्रेमियों के लिए एक अद्भुत अहसास भी।

अब सवाल ये है कि इससे क्रिकेट के देश कहे जाने वाले भारत में क्या फ़र्क़ पड़ेगा ? ये बड़ा सवाल है लेकिन इसकी तह में अगर हम जाएं और क्रिकेट से ही जोड़कर देखें तो आपको इसका जवाब ढूंढने में आसानी होगी। दरअसल, 1983 से पहले भारत में भी क्रिकेट को लेकर आज जैसी दीवानगी नहीं थी लेकिन जब कपिल देव की अगुवाई में टीम इंडिया वर्ल्ड चैंपियन बनी तो अचानक से ही क्रिकेट के प्रति खेल प्रेमियों का उत्साह बढ़ गया था और देखते ही देखते ये देश क्रिकेट से पहचाना जाने लगा।

1975 में कपिल देव ने भारत को बनाया था पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड चैंपियन

ठीक इसी तरह कभी हॉकी में भी हम सिरमौर हुआ करते थे और इस देश को हॉकी से जाना जाता था, जब हम वर्ल्ड चैंपियन थे, ओलंपिक चैंपियन थे। लेकिन घांस की जगह एस्ट्रो टर्फ़ के लेते ही इस खेल में हम फीके पड़ने लगे और धीरे धीरे हॉकी को लेकर दीवानगी कम होती गई। यानी एक बात साफ़ है कि कोई भी खेल और उसके प्रति लोगों का प्यार तभी और ज़्यादा होता है जब उसमें प्रदर्शन भी शानदार हो और अगर उस खेल के हम वर्ल्ड चैंपियन हों जाएं तो फिर उस खेल के चाहने वालों की तादाद भी बढ़ती जाती है।

भारत कभी हॉकी में भी था सिरमौर

पी वी सिंधु के वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद भी अब ऐसे ही बदलाव आने शुरू होंगे बल्कि इसकी शुरुआत हो चुकी है। कभी चीन, जापान और कोरिया का कब्ज़ा समझे जाने वाले बैडमिंटन के खेल पर पिछले कुछ दशकों से भारत अपना वर्चस्व स्थापित करने की फ़िराक़ में तो लगा हुआ था, पर आख़िरी लाइन क्रॉस करने से चूक जाया करता था। प्रकाश पादुकोण से लेकर पुलेला गोपीचंद और फिर सायना नेहवाल, श्रीकांत किदाम्बी इनमें से क़रीब क़रीब सभी वर्ल्ड नंबर-1 के ताज तक तो पहुंचे थे लेकिन वर्ल्ड चैंपियन का ख़िताब हासिल करने वाली लाइन पर आकर अटक गए।

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वर्ल्ड चैंपियन बनने वाली पहली भारतीय हैं पी वी सिंधु

और अब जब पी वी सिंधु ने इस आख़िरी लाइन को भी पार करते हुए 42 साल बाद इस खेल में भारत को वर्ल्ड चैंपियन बनाया है तो इसकी चमक दूर तक जाना लाज़िमी है। सिंधु  2016 रियो ओलंपिक्स में भी गोल्ड के पास पहुंच कर चूक गईं थी, इसलिए ये मानना या कहना कि अब बैडमिंटन भारत में एक अलग और ख़ूबसूरत दिशा में जा सकता है कहना ग़लत नहीं होगा। भारत को अब विश्व स्तर पर इस खेल के लिए पहचाना जाने लगेगा, आने वाले समय में सायना नेहवाल और पी वी सिंधु को देखकर ही युवा बैडमिंटन में भी आगे आएंगे और आ रहे हैं। बस अब देखते जाइए और इंतज़ार करिए जब सिंधु की भी इस जीत को भारतीय बैडमिंटन को बदल देने वाले युग से जाना जाएगा।

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