भारतीय फुटबाल महासंघ ने पीके बनर्जी के जन्मदिन को एआईएफएफ ग्रासरूट डे घोषित किया

भारतीय फुटबॉल समुदाय पीके दा के जमीनी स्तर (ग्रासरूट) पर किए गए योगदान को नहीं भूल सकता।

Update: 2023-05-12 10:40 GMT

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने 1960 के रोम ओलंपिक में भारत के कप्तान और पीके के नाम से लोकप्रिय प्रदीप कुमार बनर्जी के जन्मदिन 23 जून को ‘एआईएफएफ ग्रासरूट दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। एक खिलाड़ी के रूप में अपार सफलता हासिल करने के बाद वह कोच बने जिसमें उन्हें काफी सफलता मिली।

बनर्जी ने 1962 के एशियाई खेलों में भारत को ऐतिहासिक स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। उनका निधन 20 मार्च, 2020 को कोलकाता में हुआ।

एआईएफएफ के महासचिव शाजी प्रभाकरण ने कहा, ‘‘हम अक्सर यह भूल जाते हैं प्रदीप दा बहुत अच्छे कोच भी थे। खेल से संन्यास लेने के बाद उन्होंने कोचिंग देनी शुरू की और अगले 30 वर्षों में देश को कई नामी खिलाड़ी दिए जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।’’

 उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय और क्लब कोच की काफी चर्चा होती है लेकिन भारतीय फुटबॉल समुदाय पीके दा के जमीनी स्तर (ग्रासरूट) पर किए गए योगदान को नहीं भूल सकता।’’

1969 में, जब फीफा ने जापान में जर्मन कोच डेटमार क्रैमर के तहत अपना पहला कोचिंग कोर्स चलाया, जिसे अंतर्राष्ट्रीय सर्किट में 'फुटबॉल प्रोफेसर' के रूप में जाना जाता है, पीके ने खुद को कोर्स के लिए नामांकित किया और प्रथम श्रेणी की डिग्री के साथ घर लौटे।

एआईएफएफ के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने एआईएफएफ ग्रासरूट डे की घोषणा करते हुए पीके बनर्जी को श्रद्धांजलि दी और कहा कि फेडरेशन खेल के निरंतर विकास को सुनिश्चित करके उनकी स्मृति का सम्मान करने का प्रयास करेगा।

कल्याण चौबे ने कहा, ‘‘मैं जो भी शब्द कहूंगा वह भारतीय फुटबॉल में प्रदीप दा के योगदान का सम्मान करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। वह हम सभी की प्रशंसा के पात्र हैं। वह हमेशा भारतीय फुटबॉल को आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे।’’

23 जून, 1936 को जलपाईगुड़ी में जन्मे, बनर्जी को व्यापक रूप से भारत के महानतम फुटबॉलरों में से एक माना जाता है और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक के रास्ते में चार गोल के साथ भारत के सर्वोच्च गोल स्कोरर थे। एक शानदार अंतरराष्ट्रीय करियर में, बनर्जी ने दो ओलंपिक (1956, 1960) और तीन एशियाई खेल (1958, 1962, 1966) खेले और 1961 में प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले फुटबॉल खिलाड़ी थे।

उन्हें 1990 में पद्म श्री से समान्नित किया गया। एक कोच के रूप में उन्होंने एक फुटबॉल कोचिंग कोर्स दूरदर्शन पर कई हफ्तों तक चलाया। 

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