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भारोत्तोलन

स्वर्ण पदक विजेता अंचिता शेउली की मां अपनी अधफटी साड़ी में लपेटकर रखती है बेटे की सारी उपलब्धियां

2013 में अचिंता के पिता जगत शेउली के निधन के बाद मां पूर्णिमा ने उन्हें ऑफ उनके भाई आलोक को बड़ी मुश्किलों ने बड़ा किया

स्वर्ण पदक विजेता अंचिता शेउली की मां अपनी अधफटी साड़ी में लपेटकर रखती है बेटे की सारी उपलब्धियां
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Pratyaksha Asthana

Updated: 11 Aug 2022 10:44 AM GMT

बर्मिंघम में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन कर कुल 61 पदक हासिल किए, और पदक तालिका में चौथे स्थान पर भारत की जगह बनाई।

राष्ट्रमंडल खेलों में सबसे ज्यादा पदक कुश्ती और फिर भारोत्तोलन में हासिल हुए हैं।

भारोत्तोलन में कमाल करते हुए भारत के भारोत्तोलक अंचिता शेउली ने स्वर्ण हासिल किया हैं। कोलकाता से 20 किमी दूर हावड़ा जिले के देयुलपुर के रहने वाले अंचिता शेउली की मां ने उनकी ट्रॉफियां और पदकों को अपनी अधफटी साड़ी में लपटेकर रखा हैं। शेउली की मां पूर्णिमा ने बताया कि दो कमरों के घर में मौजूद एकमात्र बेड के नीचे एक साड़ी में लपेटकर अचिंता की ट्रॉफी और पदक रखे हुए हैं।



जब शेउली राष्ट्रमंडल खेलों से स्वर्ण जीतकर लौटे तो उनकी मां ने एक छोटे से स्टूल पर उनकी सभी ट्रॉफी और पदकों को सजा कर रखा हुआ था।

मां पूर्णिमा शेउली ने कहा, "मैं जानती थी कि जब अचिंता आएगा तो पत्रकार और फोटोग्राफर हमारे घर आ रहे होंगे। इसलिए मैंने ये मेडल-ट्रॉफी एक स्टूल पर सजा दिए ताकि वे समझ सकें कि मेरा बेटा कितना प्रतिभाशाली है, मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि वह देश के लिए गोल्ड मेडल जीतेगा।"

2013 में अचिंता के पिता जगत शेउली के निधन के बाद मां पूर्णिमा ने उन्हें और उनके भाई आलोक को बड़ी मुश्किलों ने बड़ा किया और इस काबिल बनाया कि आज वह पूरी दुनिया में नाम कमा चुका हैं।

बेटे की कामयाबी पर उन्होंने कहा, "आज, मेरा मानना कि भगवान ने हम पर अपनी कृपा करना शुरू कर दिया है। हमारे घर के बाहर जितने लोग इकट्ठा हुए हैं, उससे दिखता है कि समय बदल गया है, किसी को भी अहसास नहीं होगा कि मेरे लिए दोनों बेटों को पालना कितना मुश्किल था।"

उन्होंने कहा, "मैंने उन्हें रोज खाना भी मुहैया नहीं करा पाती थी. ऐसे भी दिन थे जिसमें वे बिना खाये सो गए थे। नहीं पता कि मैं खुद को बयां कैसे करूं और क्या कहूं।"

अचिंता के भाई को भी भारोत्तोलन में रुचि थी। उनकी मां ने कहा कि उनके बेटों को साड़ियों पर जरी का काम करने के अलावा सामान चढ़ाना और उतारने का काम भी करना पड़ता था।

दोनों भाइयों ने इतनी मुश्किलों के बावजूद भारोत्तोलन जारी रखा। उनकी मां ने कहा, "मेरे पास अपने बेटों को काम पर भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। नही तो हमारे लिए जिंदा रहना ही मुश्किल हो गया होता।"

20 साल के अचिंता ने अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपनी मां और अपने कोच अस्तम दास को दिया हैं। पदक हासिल करने के बाद उन्होंने कहा, "अच्छा काम करके घर लौटना अच्छा महसूस हो रहा है। मैंने जो भी हासिल किया है, वो मेरी मां और मेरे कोच अस्तम दास की वजह से ही है, दोनों ने मेरी जिंदगी में अहम भूमिका निभाई है और मैं आज जो कुछ भी हूं, इन दोनों की वजह से ही हूं।"

वहीं उनके कोच अस्मत दास ने पूरा श्रेय अचिंता को दिया। उन्होंने कहा, "वह मेरे बेटे जैसा है. वह अन्य से अलग है। मैंने उसे आसानी से हार मानते हुए नहीं देखा जिससे उसे इतनी मुश्किलों के बावजूद अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद मिली।"

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