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भारोत्तोलन

Commonwealth Games 2022: 11 साल की उम्र में पिता खोने वाले अचिंता के लिए आसान नहीं था राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने तक का सफ़र

पश्चिम बंगाल में जन्में अचिंता के पिता परिवार के पालन पोषण के लिए रिक्शा चलाते थे, रिक्शा चलाने के अलावा वह मजदूरी भी किया करते थे।

Commonwealth Games 2022: 11 साल की उम्र में पिता खोने वाले अचिंता के लिए आसान नहीं था राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने तक का सफ़र
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Pratyaksha Asthana

Updated: 1 Aug 2022 1:15 PM GMT

बर्मिंघम में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में मीराबाई चानू द्वारा देश के लिए ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद खेलों के तीसरे दिन युवा भारोत्तोलक जेरेमी ने दूसरा और फिर अचिंता शेउली ने देश के लिए तीसरा स्वर्ण पदक जीता और भारत का नाम पूरी दुनिया में ऊंचा कर दिया।

73 किग्रा भार वर्ग में कुल 313 किग्रा भार उठाकर पहला स्थान हासिल करने वाले अचिंता शेउली के लिए इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं था।

पश्चिम बंगाल में जन्में अचिंता के पिता परिवार के पालन पोषण के लिए रिक्शा चलाते थे, रिक्शा चलाने के अलावा वह मजदूरी भी किया करते थे। अचिंता ने 10 साल की उम्र में पहली बार भारोत्तोलन के बारे में जाना। अचिंता से पहले उनके बड़े भाई आलोक भी भारोत्तोलन में उतर चुके हैं, उन्होंने एक बार बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता देखी थी जिसके बाद उन्हें इस खेल का जुनून ऐसे सिर चढ़ा कि वह सीधे कोच अस्तम दास के जिम में पहुंच गए, जो उनके घर के बिल्कुल करीब था। भाई के जुनून को देखते हुए कुछ सालों बाद अचिंता भी उस जिम में जाने लगे।

उनके भाई ने उन्हें भारोत्तोलन में जाने की सलाह दी, पर परिवार की आमदनी कम होने के कारण उनके लिए पेशेवर प्रशिक्षण लेना आसान नहीं था। 2013 में उनके घर की स्थिति और बिगड़ गई जब जब उनके पिता का देहांत हो गया। पिता की मौत के बाद भाई आलोक ही परिवार में एकमात्र कमाने वाले बचे थे, उन्होंने घर को संभालने और छोटे भाई के सपने को पूरे करने का जिम्मा अपने कंधो पर उठा लिया।

अचिंता के भाई आलोक ने बताया कि,"हम नेशनल की तैयारी कर रहे थे, जब 2013 में हमारे पिता का निधन हो गया था। पिता के गुजरने के बाद हमारी आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। परिवार को संभालने की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई, इसलिए मुझे वेटलिफ्टिंग छोड़नी पड़ी, लेकिन अचिंता ने खेल जारी रखा और इसमें कोच अस्तम दास का अहम रोल है।"

अचिंता की मां पूर्णिमा ने भी परिवार का पेट पालने के लिए छोटे-मोटे काम किए। बता दें 2012 में अचिंता ने एक डिस्ट्रिक्ट मीट में रजत पदक जीतकर स्थानीय स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया था।

जिसके बाद 2015 में अचिंता को आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के ट्रायल में दाखिले के लिए चुना गया। उनकी क्षमताओं ने उन्हें उसी साल भारतीय राष्ट्रीय शिविर में शामिल होने में भी मदद की। उन्होंने 2016 और 2017 में आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में अपना प्रशिक्षण जारी रखा, 2018 में वह राष्ट्रीय शिविर में आ गए।

अचिंता उस समय सुर्खियों में आए जब उन्होंने जूनियर और सीनियर राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। जिसके बाद उन्होंने 2019 में एसएएफ खेलों में एक और स्वर्ण पदक जीता अचिंता ने 18 साल की उम्र में सीनियर नेशनल में 2019 में भी स्वर्ण हासिल किया था।

2019 के बाद इस युवा खिलाड़ी ने 2021 में राष्ट्रमंडल सीनियर चैंपियनशिप में पहला स्थान हासिल किया, उन्होंने उसी वर्ष जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भी रजत पदक जीता। और अब राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतकर पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बजा चुके हैं। खास बात है कि अचिंता ने अपना स्वर्ण पदक अपने मां, भाई और कोच अस्तम दास को समर्पित किया हैं।

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