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भारत की इन महिला खिलाड़ियों ने दुनिया को बताया की हम किसी से कम नहीं

भारत की इन महिला खिलाड़ियों ने दुनिया को बताया की हम किसी से कम नहीं
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Lakshmi Kant Tiwari

Updated: 25 April 2022 12:38 PM GMT

आपने वो कहावत तो जरूर सुनी होगी की "होनहार वीरवान के होत चिकने पात" इसका मतलब है जो होनहार होते हैं उनकी काबलियत पालने में ही दिख जाती है। ये मुहावरा भारत की उन तमाम महिला खिलाड़ियों पर सटीक बैठता है जिन्होंने हर कदम पर ये साबित कर दिखाया की हम किसी से कम नहीं। इसी सिलसिले में हम आपको भारत की उन महिला खिलाड़ियों से रूबरे कराने वाले हैं जिन्होंने समाज की हर बेड़ीयों को तोड़कर विश्व स्तर पर भारत का नाम रौशन किया

1) रानी रामपाल

इस सूची में पहला नाम आता है भारतीय महिला हॅाकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का जिनके लिए हर डगर पर चट्टान खड़े थे और वो बार-बार कहते थे की तुम कुछ भी नहीं कर सकती। लेकिन रानी कहा हार मानने वाली थी। हरियाणा के साहबाद की रहने वाली यह छोरी भारत की सबसे सफल महिला हॅाकी खिलाड़ियों में शुमार हैं। भारत के लिए अब तक 212 अंतराष्ट्रीय मुकाबले खेल चुकी रानी के नाम 134 गोल हैं। रानी को यहा तक पहुंचाने में उनके पिता ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

घोड़ा गाड़ी चलाकर रानी का पालन-पोषण करने वाले उनके पिता नो वो सबकुछ किया जो हर बाप अपने बेटी के लिए कर सकता है। रानी की अगुवाई में भारत ने 36 साल बाद ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। साथ ही 2018 विश्व कप में क्वार्टरफाइनल तक का सफर भी तय किया। 2018 में भारत की सबसे सफल खिलाड़ियों में से एक रानी की कप्तानी में भारत 2018 एशियन गेम्स में रजत पदक के साथ वतन लौटी थी।

2) मैरी कॅाम

भारत की आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध एक और महिला एथलीट ने भारत का परचम ओलंपिक जैसे प्रतियोगिता में लहराया। जी हां हम यहां बात कर रहे हैं 2012 लंदन ओलंपिक में भारत को कांस्य पदक दिलाने वाली मैरी कॅाम की। आम महिला एथलीट की तरह मैरी आज जिस जगह पर हैं वहां पहुंचने आसान नहीं था।

मणिपुर के एक गरीब घर में जन्मी मैरी के घरवाले नहीं चाहते थे की वो बॅाक्सिंग जैसे खेल में अपनी किस्मत अजमाएं। खेती और भाई को संभालने के साथ ही जब भी उन्हें समय मिलता वो बॅाक्सिंग का अभ्यास करने लगती। भारत के लिए कुछ कर गुजरने का ऐसा जुनुन था उनमें की 2011 एशिया कप अपने साढ़ें 3 साल के बच्चे के आपरेशन को छोड़ चीन जाकर देश के लिए स्वर्ण पदक लेकर आ गई। मैरी की जीवन से प्रेरित बॅालीवुड डायरेक्टर उमंग कुमार ने 2014 में उनके उपर फिल्म पर बना डाली। जो दर्शकों को काफी पसंद आई। साथ ही लोगों को मैरी को काफी करीबी से जानने का मौका मिला।

3) गीता फोगाट

कुश्ती को बात हो और गीता फोगाट का नाम ना आए ऐसा हो सकता है क्या? गीता एक ऐसी पहलवान हैं जिनके नाम से भारत में महिला पहलवानी को जाना जाता है। जिस गांव में लड़कियों को स्कूल जाने तक पर पाबंदी हो वहां पर गीता जैसी लड़कियां पहलवानी में देश को पदक दिला दे ऐसा कोई सोच सकता है क्या। लेकिन मुश्किल दिखने वाली चीजों को जो आसान बना दे उसे गीता फोगाट कहते हैं। महावीर फोगाट की ये छोरी उस समय चर्चा का विषय बनी जब 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता।

गीता की उपलब्धि गिनाते-गिनाते कई पन्ने भर जाएंगे लेकिन उनकी उपलब्धि कभी कम नहीं होगी। गीता जैसे पहलवानों को नख्शे कदम पर चलते हुए 2016 में साक्षी मलिक ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना किसे ने नहीं की होगी। 2016 रियो ओलंपिक में साक्षी कांस्य पदक जीतने वाली महिला पहलवान बनी जिसका श्रेय गीता जैसी खिलाड़ियों को जाता है। गीता और उनकी बहनों से प्रेरित आमिर खान ने 2016 में उनके उपर फिल्म ही बना डाली।

4) हिमा दास

ढिंग एक्सप्रेस के नाम से मशहूर हिमा दास आज जिस मुकाम पर हैं वहां पर पहुंचना उनके लिए कभी आसान नहीं था। यहां पर पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत के साथ हिमा को गरीबी का भी सामना करना पड़ा। आसाम के धान की खेती करने वाले एक साधारण किसान की बेटी हिमा को लड़कों के साथ फुटबॅाल खेलना काफी पसंद था। एक दिन हिमा को तराशने वाले कोच निपोन कहीं जा रहे थे। तभी उनकी नजर हिमा पर पड़ी और उनकी फुर्ती को देख कोच निपोन ने उन्हें फुटबॅाल छोड़ एथलेटिक्स में किस्मत अजमाने की सलाह दी।

हिमा ने बिना देर किए इस आफर को स्वीकार कर लिया और इसके बाद जो हुआ इतिहास उसका गवाह है। एशियन गेम्स में 4 गुना 400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीतने के साथ आईएएएफ विश्व अंडर - 20 में हिमा ने स्वर्ण अपने नाम किया। ये ऐसा पहली बार था जब भारत की किसी महिला धावक ने ये मुकाम हासिल किया। आसाम की इस युवा धावक की उपलब्धि से प्रेरित स्पोर्टस वियर और जूते की कंपनी एडिडास ने 2018 में हिमा को अपना ब्रांड एमबेस्डर नियुक्त किया ।

5) सिंह सिस्टर्स

वाराणसी वो शहर जिसे दुनिया आस्था का केंद्र बिंदु मानती है। यहां पर हर इंसान काशी विश्वनाथ के चौखट पर शांति की प्राप्ति के लिए आता है। लेकिन अगर हम आपसे बोले की वाराणसी को सिंह सिस्टर्स के शहर के नाम से जानता है तो क्या आप मानेंगे? ये नाम सुनकर ही आपके मन में ख्याल आ रहा होगा की आखिर हम किसके बारे में बात कर रहे हैं? चलिए अगर आप इस नाम से परीचित नहीं हैं तो हम आपको रूबरू करा देते हैं। दरअसल सिंह सिस्टर्स 5 बहनों को कहा जाता है। जिनके नाम है प्रियंका, दिव्या, प्रशांति, आकांक्षा और प्रतिमा सिंह।

जिसमें से 4 भारतीय महिला बास्केटबॅाल टीम के लिए खेल चुकी हैं। साथ ही दिव्या और प्रशांति राष्ट्रीय टीम की कमान भी संभाल चुकी हैं। प्रशांति की कप्तानी में भारत ने तीसरी एशियन इंडोर गेम्स में रजत तो वहीं 2011 साउथ एशियन बीच गेम्स में स्वर्ण पदक पर कब्जा किया था। इतना हीं नहीं प्रशांति की उपलब्धि के लिए 2017 में अर्जुन पुरस्कार तो वहीं 2019 में पद्दम श्री पुरस्कार से नवाजा गया। इन पांच बहनों के लिए कभी ये सफर आसान नहीं था। लेकिन जब आप कुछ कर दिखाने के बारे में ठान लेते है तो फिर हर मुश्किल आसान लगने लगती है। आज सिंह सिस्टर्स जिस मुकाम पर हो उसमे उनकी मां ने अहम भूमिका निभाई।

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