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विशेष

सरकारी खेल संस्थानों में 2017 से 28 एथलीट यौन उत्पीड़न का शिकार, द ब्रिज की आरटीआई से हुआ खुलासा

पिछले 10 सालों में कोचों के खिलाफ 34 और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ 11 मामले थे

सरकारी खेल संस्थानों में 2017 से 28 एथलीट यौन उत्पीड़न का शिकार, द ब्रिज की आरटीआई से हुआ खुलासा
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The Bridge Desk

Updated: 13 Jun 2022 4:20 PM GMT

देश में पिछले कुछ दिनों से खेल जगत में खिलाड़ियों और कोच के संबंध को लेकर हलचल मची हुई है। पिछले दिनों एक साईकिलस्ट और एक सेलर (नाविका) ने अपने साथ हो हुए यौन अपराधों को लेकर आवाज उठाई थी और इसकी शिकायत खिलाड़ियों ने भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) और खेल संघों से की थी। अब इस संबंध में हाल ही में द ब्रिज ने भारतीय खेल प्राधिकरण से जानकारी के लिए आरटीआई (सूचना का अधिकार) दायर की थी। जिसमें हमने पिछले पांच वर्षों में सरकार द्वारा संचालित खेल संस्थानों में दर्ज किए गए यौन उत्पीड़न के मामलों की संख्या की जानकारी जानना चाही थी। साथ यह भी जानने की कोशिश की थी कि पिछले 10 वर्षों में इन संस्थानों के कोचों और प्रशासकों के खिलाफ कितनी शिकायतें दर्ज की गईं।

रिपोर्ट में आए चौंकाने वाले नतीजे

अब जब जबाव के तौर पर इसकी रिपोर्ट हमारे पास आयी है, तो इसमें कई चौंकाने और हैरान करने वाले मामले हमारे सामने आए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, मई 2017 से मई 2022 के बीच भारत में ऐसे केंद्रों को कुल 28 यौन उत्पीड़न की शिकायतें मिलीं। वही पिछले 10 सालों में कोचों के खिलाफ 34 और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ 11 मामले थे। आईये इन मामलों में से कुछ चुनिंदा मामलों के बारे में विस्तार से जानते हैं कि किस तरह कोचों ने कुछ खिलाड़ियों के दुव्र्यवहार कर उनके करियर को बर्बाद करने की कोशिश की।

हाॅकी खिलाड़ी ने कोच पर लगाए आरोप

इन सब में सबसे बड़े मामलों से एक था, साल 2010 का मामला। जब एक भारतीय राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी ने 2010 में महिला टीम के मुख्य कोच के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। खेल मंत्रालय को संबोधित एक पत्र में कहा गया था कि कोच एमके कौशिक "अवैध गतिविधियों", "जूनियर लड़कियों से यौन एहसान माँगने" और "भद्दे कमेंट" करते थे। पत्र में कहा गया है "गरीब और विनम्र पृष्ठभूमि से आने वाली सभी लड़कियां कोच के खिलाफ बोलने से बहुत डरती हैं।" कोच को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन 2013 में वे इस पद पर वापस लौट आए। उन्होंने कहा, "मैं इन सभी आरोपों को अपने पीछे रखना चाहता हूं।" साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसे विचार वाले खिलाड़ी कभी न खेले।

कुछ ऐसा ही मामला आंध्र प्रदेश से भी सामने आया था। जहां आंध्र प्रदेश क्रिकेट संघ के सचिव वी चामुंडेश्वरनाथ पर टीम चयन के लिए यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था। आंध्र महिला क्रिकेट टीम के कई सदस्यों ने आरोपों के संबंध में राज्य के गृह मंत्री से भी मुलाकात की थी। आरोपी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन राजनीति और पावर के कारण वह महिला क्रिकेट संघ से निकलकर तेलंगाना बैडमिंटन संघ में उपाध्यक्ष के रूप में चले गए।

मुक्केबाज ने की आत्महत्या

रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई, जब एक होनहार महिला मुक्केबाज ने अपने कोच द्वारा कथित उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली। उन्होंने मामले को लेकर शिकायत की थी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। बाद में आरोपों को आधिकारिक रूप से आगे नहीं बढ़ाया गया और प्रभावी समाधान के बिना मामला जल्दी से जल्दी समाप्त हो गया। वही एक 29 वर्षीय महिला जिमनास्ट ने 2014 एशियाई खेलों से पहले एक कोच और एक पुरुष जिमनास्ट पर अभद्रता और डराने-धमकाने का आरोप लगाया था। एक अन्य मामले में एक खिलाड़ी जिसका नाम तुलसी था। जो राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक विजेता थीं। उन्होंने तमिलनाडु राज्य एमेच्योर बॉक्सिंग संघ के सचिव के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज की थी। उन्होंने कहा था कि वह राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों के चयन के लिए उनके साथ यौन उत्पीड़न कर रहे थे।

जवाबदेही की कमी

रिपोर्ट बताती है कि जवाबदेही की कमी अधिकतर मामलों को 'सबूत की कमी', 'समझौता', 'झूठे आरोप' और इस तरह की अन्य तुच्छताओं से लेकर आधिकारिक कारणों से दबा दिया जाता है। 2013 में पारित पीओएसएच अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, प्रत्येक नियोक्ता को संगठन के भीतर उत्पन्न होने वाली शिकायतों को देखने के लिए संगठन के भीतर एक आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) की उपस्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए। आईसीसी का गठन न करना दंड का कारण बन सकता है और यह प्रावधान भारत में सरकारी और निजी दोनों संगठनों तक फैला हुआ है। दुर्भाग्य से, कई राज्य खेल संगठनों ने अभी तक एक प्रभावी आईसीसी का गठन नहीं किया है। 2022 में भी, इन निकायों में यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न और अन्य आरोपों की जांच के लिए कोई उपचारात्मक उपाय मौजूद नहीं है।

सही तरह से नहीं किया गया मामलों का निपटारा

वही रिकॉर्ड बताते हैं कि साई ने पिछले 10 वर्षों में 41 मामलों का निपटारा किया है, लेकिन भारतीय खेल विवादों के धुंधले अतीत में बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है, यह देखने के लिए कि इनमें से कई आरोपों को अक्षम तरीके से निपटाया गया है।

क्षुद्र राजनीति

अप्रैल 2022 में हुआ एआईएफएफ घोटाला इसमें शामिल सभी दलों की अव्यवसायिकता का एक प्रमुख उदाहरण है। विवाद में एक टीम के मालिक (रंजीत बजाज) शामिल थे, जिन्होंने फुटबॉल निकाय के महासचिव (कुशाल दास) पर कार्यस्थल में कर्मचारियों से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया और एआईएफएफ के पूर्व अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल पर आपत्तिजनक विवरण छिपाने का आरोप लगाया।

एआईएफएफ ने दावा किया कि यह आरोप मानहानि का है। गठित आईसीसी ने आरोपी को क्लीन चिट दे दी और कहा कि आरोप "बेबुनियाद और सच्चाई से रहित" था। महासंघ की आंतरिक शिकायत समिति के पूर्व पीठासीन अधिकारियों से पूछताछ के बाद यह निष्कर्ष निकला है। आरोप लगाने वाले ने राष्ट्रीय महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई और फीफा को लिखा लेकिन मामले की विस्तृत जांच अभी शुरू नहीं हुई है। प्रशासकों और निहित स्वार्थ वाले व्यक्तियों के बीच यह आगे और पीछे कई उदाहरणों में से एक है, जिसने भारतीय खेलों को खराब रोशनी में रखा है। कई आरोपों के साथ, समस्या की पहचान करना अपने आप में एक बड़ा काम बन जाता है। इस अराजकता के बीच, खेल निकायों के आईसीसी के लिए मामलों को झूठा और तुच्छ बताकर खारिज करना बहुत आसान है।

यह मामले उन सभी सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए तमाचा है। जो देश में "बेटी बचाओ और बेटी बढ़ाओ" का संदेश देते हैं। साथ ही यह मामले उन लोगों के लिए भी एक तमाचा है, जो देश में महिला एथलीटों को आगे बढ़ाने के लिए उनसे यौन संबंध प्रदान की मांग करते हैं। वही सरकार द्वारा संचालित भारतीय खेल निकायों का लक्ष्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एथलीटों का समर्थन करना और भारत का गौरव बढ़ाना होना।

हालांकि, कोच और प्रशासनिक अधिकारी व्यक्तिगत जरूरतों को संतुष्ट करने को एक बड़ी प्राथमिकता मानते हैं। ये व्यक्तिगत जरूरते केवल यौन यौन संबंध नहीं हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए राजनीति करना भी शामिल है कि अन्य व्यक्तियों को समाज में नीचा या बदनाम किया जाए। पिछले हफ्ते भारतीय खेलों में धूम मचाने वाली एक शीर्ष साइकिल चालक की शिकायत के अनुसार, राष्ट्रीय टीम के कोच ने उसे धमकी दी कि अगर वह उसके साथ नहीं सोई तो वह उसे राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (एनसीओई) से हटाकर उसका करियर बर्बाद कर देगा।

इन गड़बड़ी को दूर करने के लिए भारतीय खेल प्रशासन को अभी लंबा रास्ता तय करना है। जब भारत में खेल महासंघ चलाने की बात आती है तो धन और शक्ति की बड़ी आवश्यकता प्रतीत होती है। अपने प्रशासनिक क्षेत्र की हर सीमा को नियंत्रित करने के इच्छुक राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच, खिलाड़ी घोर अक्षम, विकृत और छोटे दिमाग वाले व्यक्तियों के हाथों पीड़ित होते रहेंगे।

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