भारोत्तोलन
वीडियो: देश के लिए खेलने की आरज़ू लिए गैरेज में पसीने बहा रहे हैं वेटलिफ़्टर मामा-भांजे
बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन सरकारी मदद के अभाव में बर्बाद हो रहे खिलाड़ी
बिहार में खेल और प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन उन्हें प्रोत्साहन देने वाले या क़द्र करने वाले कम हैं जिस वजह से ऐसी प्रतिभाएं कहीं छिपी रह जाती हैं और धीरे धीरे बर्बादी की कगार पर चली जाती हैं। एक ऐसा ही वेटलिफ़्टर आज बिहार में वेट लिफ़्टिंग छोड़कर गैरेज में काम करने को मजबूर है, इस पहलवान का नाम है सद्दाम हुसैन। द ब्रिज हिन्दी बिहार के कटिहार में स्थित यूट्यूब चैनल 'मैं मीडिया' के साथ मिलकर आज आपके सामने सद्दाम और उनके भांजे की तस्वीर लेकर आया है। जिसे देखकर आप भी बिहार सरकार की कथनी और करनी के बीच का बड़ा फ़र्क समझ जाएंगे, हमारी कोशिश रहेगी कि ये वीडियो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और खेल मंत्री प्रमोद कुमार के अलावा हर उस अधिकारी और खेल प्रेमियों तक पहुंचे जो इन्हें मदद दिला सकते हैं।
कटिहार गेड़ाबाड़ी सड़क पर वीडियो में दिख रहे इस गैरेज की पहचान कभी सिर्फ़ एक ट्रैक्टर गैरेज के रूप में हुआ करती थी, मगर आज इस ट्रैक्टर गैरेज की एक और अलग पहचान है, लोग आज इस गैरेज को सद्दाम पहलवान के अखाड़े के तौर पर भी जानते हैं। एक गरीब परिवार से आने वाले सद्दाम कभी किसी कारण से शहर के वेटलिफ्टिंग क्लब में पंहुचे थे, और उन्हें उसी दिन से इस खेल में रूचि होने लगी थी, मगर काम के बीच में शहर जा कर प्रैक्टिस करना बेहद मुश्किल था। इसलिए उसने अपने ट्रैक्टर गैरेज में ही जुगाड़ तंत्र के सहारे वेटलिफ्टिंग से जुड़े हुए कुछ उपकरण बना कर प्रैक्टिस शुरू कर दी।
इतना ही नहीं सद्दाम का वेटलिफ़्टिंग के लिए प्यार किया है वह तब समझ में आता है जब उन्होंने अपने भांजे को भी मज़दूरी के बाद इस विधा में अपने साथ तैयारी करवाने लगे। ताकि उनके सपने को अगर वह पूरा न कर सकें तो उनका भांजा साकार कर दे, हाल ही में सद्दाम ने बंगाल के सिलीगुड़ी में आयोजित प्रतियोगिता में मणिपुर, बिहार, बंगाल, असम के साथ साथ देश भर से आए 600 सौ प्रतिभागियों को पछाड़ते हुए 'स्ट्रांग मैन ऑफ़ सिलीगुड़ी' का ख़िताब भी जीता है। उन्होंने अपने वर्ग में 155 किलो पॉवर लिफ्टिंग की है।
जबकि उनके साथ गये मजदूरी करने वाले उनके भांजे ने लगभग 200 प्रतिभागियों के बीच 60 किलो वर्ग में पॉवर लिफ्टिंग कर दूसरा स्थान प्राप्त किया है। इन दोनों मामा भांजे का अफ़सोस सिर्फ इतना ही है कि आज भी ये सरकारी मदद से महरूम हैं, फिर भी अपने बुलंद हौसले के सहारे आने वाले दिनों में ये मामा-भांजे हिंदुस्तान के लिए कुछ बड़ा करने की चाहत रखते हैं।
उम्मीद है कि द ब्रिज और मैं मीडिया की ये पहल रंग लाए और ये तस्वीर बिहार में बंद कमरे में बैठे उन नेताओं, अधिकारियों और कर्ताधर्ताओं तक पहुंचे जो इस प्रतिभा को गैरेज से निकालकर वेट लिफ़्टिंग मैट तक पहुंचा पाए।