बास्केटबॉल
शुरूआती दिनों में आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा: हरसिमरन कौर

बीतें कुछ वर्षों में भारतीय बास्केटबॅाल के बारे में बात करें तो एक अलग ही तरह का बदलाव देखने को मिला है। एक समय था जब भारत के खिलाड़ियों के पास ना खेलने का साधन होता था और ना ही आय का जरिया लेकिन आज खिलाड़ियों के पास वो सब सुविधा है जिससे वो अपना घर चलाने के साथ ही अपने खेल पर भी ध्यान दे सकते हैं।
कुछ ऐसी ही कहानी है पंजाब की युवा खिलाड़ी हरसमिरन कौर की जिन्होंने हाल ही में नेपाल में आयोजित साउथ एशियन गेम्स में ना ही सिर्फ भारत की झोली में स्वर्ण पदक डाला बल्कि एक उभरते ही खिलाड़ी के रूप में सामने आई।
हरसिमरन खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पंजाब की टीम हिस्सा रही थी। इसस पहले भारत की ये खिलाड़ी एनबीए वुमेंस कैंप के साथ आस्ट्रेलिया में आयोजित मल्टी वीक ट्रेनिंग कैंप में चुने जानें वाली भारत की एकमात्र खिलाड़ी थी। द ब्रिज ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स के दौरान हरसिमरन कौर से विशेष बातचीत की और जानना चाहा उनके भविष्य के रणनीतियों और साथ ही उनके सफलता के राज के बारे में।

द ब्रिज: साउथ एशियन गेम्स में भारत के लिए स्वर्ण पदक दिलाकर अपना कितना खुश हैं?
हरसिमरन कौर: किसी भी खिलाड़ी के लिए देश से बढ़कर कुछ नहीं और जब आपको अपने देश के लिए कुछ करना का मौका मिलता है उस चीज का एहसास किसी भी चीज से बढ़कर होता है। मुझे गर्व है कि मैं भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में कामयाब रही और आगे भी यही उम्मीद रहेगी कि अपने प्रदर्शन से इंडिया को एक नई बुलंदियों तक पहुंचाओं।
द ब्रिज: आप आस्ट्रेलिया में एनबीए द्वारा आयोजित मल्टी वीट कैंप का हिस्सा रही थी आपको वहां पर क्या कुछ सीखने को मिला?
हरसिमरन कौर: इस प्रशिक्षण शिविर में बहुत कुछ सीखने को मिला। यहां पर विश्व भर के खिलाड़ी आए हुए थे। साथ ही एनबीए के कई टॅाप कोच भी उपलब्ध थे। जब आप इतने बड़े कैंप का सिर्फ हिस्सा भर भी रहते हो तो बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इन खिलाड़ियों के सामने पता चलता है कि हमें कहां कम कारने की जरूरत है। मैंने इस कैंप में बहुत कुछ सीखा ड्रीबल, पास, पीवोट पोजिशन पर किस तरह ज्यादा से ज्यादा स्कोर करते हैं।

द ब्रिज: आपके पिता ने आपको यहां तक पहुंचने में किस तरह से सहायता की?
हरसिमरन कौर: मैं यहां तक सिर्फ अपने पिताजी के वजह से आ पायी हूं। उनका सपना था कि वो भारतीय टीम का हिस्सा बने लेकिन चोटिल होने के कारण वो कभी नहीं खेल पाए। अभी वो इंडियन रेलवे टीम के कोच हैं। मैंने उनको ही देखकर 12 साल से ही खेलना शुरू कर दिया था। यहां तक पहुंचने में मुझे 5 से 6 साल का समय लगा। मेरे पिताजी का सपना है वो मुझे डब्लूएनबीए में खेलता हुआ दिखना चाहते हैं। जिसको लेकर में हर दिन मेहनत कर रही हूं और उम्मीद है कि वहां तक जल्द ही पहुंचुंगी।
द ब्रिज: शुरूआती दिनों में किस तरह का मुश्किल का सामना करना पड़ा आपको?
हरसिमरन कौर: स्कूल टीम के लिए जब मैं खेलती थी तो मुझे जूतों को लेकर काफी परेशान होती थी। मैं पापा को भी बोल नहीं सकती थी। क्योंकि उनके पास उतने पैसे नहीं हुआ करते थे। लेकिन बाद में जैसे-जैसे आगे बढ़ती गयी जूते और अन्य दिक्कत खत्म हो गए।