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कुश्ती

'गामा पहलवान' जो अपनी जिंदगी में कभी नही हारा

पहलवानी करियर में उन्हें कभी भी कोई भी नहीं हरा सका

गामा पहलवान जो अपनी जिंदगी में कभी नही हारा
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Ankit Pasbola

Published: 18 Nov 2019 3:58 AM GMT

जब-जब पारम्परिक कुश्ती का जिक्र होता है, तब-तब गामा पहलवान का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। इतिहास का ऐसा पहलवान जिसने कभी कोई मुकाबला न हारा हो। गामा पहलवान का असली नाम गुलाम मोहम्मद बक्श था। रुस्तम-ए-हिन्द जैसे उपनामों से प्रचलित गामा ने विश्व भर के तमाम पहलवानों को धूल चटाई है। इन्होंने 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। गामा की असाधारण प्रतिभा का प्रमाण यह तथ्य है कि क़रीब पचास साल के पहलवानी करियर में उन्हें कभी भी कोई भी नहीं हरा सका।

दस साल की आयु में गामा ने जोधपुर में आयोजित एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस आयोजन में क़रीब चार सौ नामी पहलवानों ने भागीदारी की थी और गामा अन्तिम पन्द्रह में जगह बना सकने में क़ामयाब हुए। इससे प्रभावित होकर जोधपुर के तत्कालीन महाराजा ने गामा को विजेता घोषित कर दिया। इसके बाद गामा ने पहलवानी में पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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गामा से रुस्तम-ए-हिन्द तक का सफर:

वो दौर था रहीम बक्श सुलतानीवाला का, जिसके नाम के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे। उस दौर के भारत के सबसे बड़े और अनुभवी पहलवान रहीम बक्श को युवा गामा पहलवान ने चुनौती दी। रहीम बख्स शारीरिक तौर पर काफी लम्बे चौड़े पहलवान थे तो दूसरी तरफ गामा का कद कुछ कम था। कहा जाता है यह मुकाबला काफी टक्कर का रहा। दोनों पहलवानों में से किसी की हार नहीं हुई और मुकाबला ड्रा रहा। इसके बाद दोनों पहलवानों के बीच एक और कड़ा मुकाबला हुआ जिसमें गामा ने बाजी मार ली और इसके साथ भारत के चैम्पियन पहलवान बन गये।

विश्व चैम्पियन बनने तक का सफर:

साल 1910 तक उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के सभी नामी पहलवानों को शिकस्त दे दी थी। अब बारी थी विश्व स्तर पर नाम बनाने की। गामा पहलवान अपने छोट भाई इमाम बख़्श के साथ इंग्लैंड चले गये। छोटे कद के होने के कारण उन्हें प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेने दिया गया, जिसके बाद उन्होंने यूरोप के पहलवानों को चुनौती दी कि वे तीस मिनट के भीतर किसी भी भार वर्ग के किन्हीं तीन पहलवानों को हरा देंगे। इस चुनौती को किसी ने भी गम्भीरता से नहीं लिया। बड़े पहलवानों स्टेनिस्लास जबिस्को और फ्रेंक गॉच का नाम लेकर उनको चैलेंज किया, लेकिन सबसे पहले उनकी चुनौती को अमेरिका के बेंजामिन रोलर ने स्वीकार किया। मुकाबला शुरू हुआ अभी सिर्फ 1 मिनट 40 सेकंड हुए थे रोलर चारों खाने चित्त पड़ा था। करीब 9 मिनट और 10 सेकंड ये मुकाबला चला। आखिर में गामा ने रोलर को दे पटका और मुकाबला जीत लिया। फिर अगले दिन गामा ने कुल 12 पहलवानों को हरा दिया।

Credit: Facebook
जबिस्को और गामा पहलवान

यूरोप में भी गामा के नाम का डंका बजने लगा और विश्व के सबसे धुरंदर पहलवान जबिस्को ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली। यह विश्व चैम्पियनशिप का मुकाबला था। जबिस्को का वज़न बहुत ज्यादा था। लेकिन सिर्फ एक मिनट में गामा ने जबिस्को को उठा कर ऐसे नीचे पटक दिया कि वो बहुत देर तक उठ ही नहीं पाये। बहुत देर तक जब वो नहीं उठे, मैच को ड्रा मान लिया गया। 17 सितम्बर को इन्हीं दो के बीच एक और मुकाबला होना था पर जबिस्को ने इसमें हिस्सा नहीं लिया और गामा को विश्व-चैम्पियन घोषित किया गया।

विश्व चैम्पियन बनने के बाद गामा की भारत वापसी हुई जहां उनका मुकाबला एक बार फिर रहीम सुलतानीवाला से हुआ। गामा ने यह मुकाबला जीता और रुस्तम-ए-हिन्द का अपना ख़िताब बरकरार रखा। इसके बाद उन्होंने एक और बड़े पहलवान पंडित बिद्दू को मात दी। विभाजन के बाद गामा पाकिस्तान चले गए जहां 1960 में उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के कुछ वर्ष पहले दिये गए एक इन्टरव्यू में गामा ने रहीम सुलतानीवाला को अपना सबसे कड़ा प्रतिद्वंद्वी बताते हुए कहा था, "हमारे खेल में अपने से बड़े और ज़्यादा क़ाबिल खिलाड़ी को गुरु माना जाता है। मैंने उन्हें दो बार हराया ज़रूर, पर दोनों मुकाबलों के बाद उनके पैरों की धूल अपने माथे से लगाना मैं नहीं भूला।"

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