टोक्यो 2020
चेरी ब्लॉसम मौसम की शुरुआत के साथ होगी टोक्यो 2020 ओलिंपिक मशाल रिले की शुरुआत
टोक्यो 2020 आयोजन समिति ने ओलिंपिक टॉर्च (मशाल) और प्रतीक चिन्ह का अनावरण एवं दूतो की घोषणा कर दी है। ओलिंपिक मशाल की आकृति जापान के मुख्य एवं प्रसिद्द फूल चेरी ब्लॉसम के रूप में है। चेरी ब्लॉसम प्रूनस के पेड़ों का एक फूल है, जिसे जापानी भाषा में सकुरा भी कहा जाता है। हर वर्ष वसंत ऋतू की शुरुआत में ये फूल खिलते है जिसे ही चेरी ब्लॉसम सीजन कहा जाता है।इस मौसम की शुरुआत के साथ ही मार्च 2020 में ओलिंपिक मशाल रिले की भी शुरुआत होगी।
इस बार मशाल रिले का सिद्धांत 'Hope Lights Our Way' (अर्थ: उम्मीद ही हमारा मार्ग रोशन करती है) रखा गया है, जो की जापान के प्रत्येक नागरिक को खेलों का समर्थन देने, स्वीकार करने और एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने के संदेश के साथ लोगों को एकजुट करता है 710 मिलीमीटर लम्बी एवं 1.2 किलोग्राम वजनी इस मशाल को पारम्परिक रूप में एल्यूमीनियम एक्सट्रूज़न निर्माण तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है, यही तकनीक का इस्तेमाल जापान की प्रसिद्द शिनकानसेन बुलेट ट्रेन के निर्माण में भी हुआ है। मशाल को पारम्परिक सकुरा एवं सुनहरे रंग से सजाया गया है।
इस मशाल की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि इसका निर्माण एल्युमीनियम की एक मात्र शीट का उपयोग करके किया गया है। मशाल में करीबन 30% रीसाइकल्ड एल्युमीनियम का उपयोग किया है जिसका उपयोग पहले 2011 में आये ग्रेट ईस्ट जापान भूकंप के बाद पूर्वनिर्मित आवास इकाईयों के रूप में किया गया था। भूकंप प्रभावित लोगो द्वारा उपयोग की गयी इन अस्थायी इकाईयों को मशाल के निर्माण में एक शांति के प्रतीक, और आपदा प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे में बताने के तौर पे किया गया है।
मशाल में स्थित पांच सिलिंडर जापानी सभ्यता का अभिन्न अंग एवं जापानी लोगो द्वारा पसंद किये जाने वाले इस फूल की पांच पंखुड़ियों को प्रदर्शित करते है, मशाल की लौ प्रत्येक पंखुड़ियों से निकलते हुए मशाल के मध्य में एकत्रिक होकर एक रोशन एवं प्रज्वलित लौ देगी जिसे 'Path of hope'(अर्थ: आशा की किरण) कहा गया है।
मशाल की लौ को लगातार जलाने के लिए कई सारी नयी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है।मशाल में 2 दो कम्बशन मैकेनिज्म है: एक उच्च कैलोरी ब्लू फ्लेम और एक फ्लेमलेस मैकेनिज्म जो मशाल की लाल लौ को जलते रहने में मदद करेगा। मशाल की लौ जापानी द्वीप समूहों के हर भूगोलीय क्षेत्र, जलवायु एवं मौसम में निरंतर जलती रहेगी। मशाल की ग्रिप तथा वजन को इस तरह संतुलित किया गया कि हर वर्ग एवं उम्र का व्यक्ति इस मशाल को आसानी से उठा सके। यह मशाल रिले 121 दिनों क़े लम्बे समय तक चलेगी तथा इस दौरान पुरे जापान की परिक्रमा करेगी।
मशाल रिले का प्रतीक चिन्ह भी जापानी सभ्यता को प्रदर्शित करता है। तीन आयताकार पट्टियां, मशाल की लौ को प्रदर्शित करती है, इसके साथ ही २ रंगो के उत्कृष्ट टोन लेन के लिए "fukibokashi" (फुकिबोकाशी) तकनीक का उपयोग किया गया जो कि एक जापानी "ukiyo-e" वुडब्लॉक प्रिंटिंग तकनीक के तौर पे जाना जाता है। जहाँ सिन्दूरी रंग एक ऊर्जावान, स्नेहभरी और भावुक छवि को पैदा करता है वही ऑक्रोसस रंग उत्सवी माहौल तथा धरती की मिटटी की याद दिलाता है। इन दोनों रंगो का मिश्रण ओलिंपिक मशाल की लौ को दर्शाता है।
1928 के ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक खेलों के दौरान पहली बार आधुनिक ओलिंपिक खेलों में ओलिंपिक मशाल को प्रज्वलित किया गया था तभी से प्रत्येक ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक खेलों के शुरू होने से पूर्व ओलिंपिक मशाल को प्रज्वलित किया जाता है तथा ये ज्योति खेलों के समापन तक निरंतर जलती रहती है। मशाल रिले का आयोजन 1936 के ग्रीष्मकालीन खेलों से किया जाने लगा। हेरा के मंदिर में ओलिंपिक ज्योति को प्रज्वलित करने के बाद एक ग्रीक खिलाड़ी इस ज्योति से मशाल को जलाता और इसी के साथ आधिकारिक तौर पे मशाल रिले की शुरुआत हो जाती है । इसके बाद यह मशाल ग्रीस के विभिन्न शहरों में ले जाई जाती है और इसके बाद एथेंस में पैनथेनिक स्टेडियम में एक समारोह के दौरान इसे मेजबानी करने वाले देश को सौप दिया जाता है ।