मुक्केबाजी
अगले महीने शादी के बंधन में बंध जाएंगे कबड्डी टीम कप्तान दीपक हुड्डा और मुक्केबाज स्वीटी बूरा
स्वीटी बूरा ने बताया कि शादी की वजह से वह अपने खेल पर किसी तरह का प्रभाव नही पड़ने देंगी। शादी के बाद जिम्मेदारी बढ़ जाएगी लेकिन वह अपना खेल नही छोड़ेंगी
![Deepak Hooda and Saweety Boora Deepak Hooda and Saweety Boora](https://hindi.thebridge.in/h-upload/2022/06/29/31492-deepak-hooda-and-saweety-boora.webp)
दीपक हुड्डा और स्वीटी बूरा
भारतीय कबड्डी टीम के कप्तान दीपक हुड्डा और हिसार की मुक्केबाज स्वीटी बूरा 7 जूलाई को रचाएंगे शादी। हरियाणा के रोहतक में रहने वाले दीपक हुड्डा की शादी स्वीटी बूरा के साथ होगी। दोनों तरफ शादी को लेकर तैयारियां काफी जोर-शोर से चल रही हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीटी बूरा के नाम है कई पदक
बता दें मुक्केबाज स्वीटी बूरा अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक अपने नाम कर चुकी हैं। स्वीटी बूरा ने बताया कि अभी चीन में सितंबर के महिने में होने वाली एशियाई खेलों की तैयारी कर रही थी, लेकिन कोरोना की वजह से एशियाई खेल पोस्टपोन हो गए। उन्होंने आगे बताया कि शादी की वजह से वह अपने खेल पर किसी तरह का प्रभाव नही पड़ने देंगी। शादी के बाद जिम्मेदारी बढ़ जाएगी लेकिन वह अपना खेल नही छोड़ेंगी। बूरा ने बताया कि वह अभी भी दिल्ली इंडिया कैंप में थी, लेकिन फिलहाल उन्होने अपनी शादी के लिए छुट्टी ले ली है।
भारत कबड्डी टीम के कप्तान दीपक हुड्डा ने बताया कि, जब वह केवल चार वर्ष के थे तब उनकी माँ का निधन हो गया। उनके पिता एक मामूली किसान थे, जो कि दिनभर खेतों में मजदूरी कर अपने परिवार को रोजी-रोटी चलाते थे। उनके परिवार में उनकी शादीशुदा बहन अपने दो बच्चों के साथ रहती थी। जब दीपक 12वीं कक्षा में उनके सिर से पिता का भी साया उठ गया। जिसके बाद उनका घर चलाने वाला कोई नही रहा और परिवार की देखभाल दीपक के कंधो पर आ गई। दीपक को अपनी बहन के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और नौकरी के लिए कबड्डी खेलना शुरू कर दिया।
नौकरी पाने के लिए दिपक ने दिन-रात एक कर कड़ी मेहनत, अभ्यास और संघर्ष किया और उनका जुनून देश के लिए बड़ी कामयाबी का जरिया बना। उनकी इस जिद ने उनकों मंजिल तक पहुंचाया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को पांच स्वर्ण और एक कांस्य पदक भी दिलाया। दीपक हुड्डा ने बताया कि, उनकी कामयाबी के पिछे उनके पहले गुरु कोच जगमाल सिंह और इसके बाद कोच बलवान सिंह, कोच असन कुमार और जयबीर शर्मा का बहुत बड़ा योगदान रहा हैं।