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मुक्केबाजी

Commonwealth Games 2022: चुनौतियों से भरा रहा निकहत का जीवन, 14 वर्ष की उम्र में ही जीत ली थी पहली चैंपियनशिप

मात्र 14 वर्ष की उम्र में वें राष्ट्रीय सब -जूनियर मीट में स्वर्ण जीतकर युवा बाक्सिंग चैंपियन बन गई

Nikhat Zareen Boxing
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निकहत जरीन

By

Amit Rajput

Published: 27 July 2022 6:12 PM GMT

देश में बहुत कम ऐसी महिलाएं होती है जो अपने सपने को पूरा कर पाती है। लेकिन जो महिलाएं अपने सपने को पूरा कर पाती है वह महिलाएं देश और दुनिया की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन जाती है। कुछ ऐसी ही कहानी है, भारत की उभरती हुई युवा महिला मुक्केबाज निकहत जरीन की। जिन्होंने अपने दम पर अपने सपने को पूरा किया और विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप जीतकर देश की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी।

निकहत जरीन का जन्म तेलंगाना के निजामाबाद में 14 जून 1996 को हुआ। उनके पिता पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर मोहम्मद जमील है। वही उनकी मां का नाम परवीन सुल्ताना है। निकहत की दो बड़ी बहनें भी है। उन्होंने डाॅक्टर बनने का ठाना लेकिन निकहत ने अपनी दोनों बहनों के विपरीत एथलेटिक्स चुना। उन्होंने अपने चाचा की सलाह पर मात्र 13 वर्ष की उम्र में अपने हाथों पर मुक्केबाजी गलव्स बांधे। लेकिन उनके लिए इस सपने को पूरा करना घर के काम करना जितना आसान नहीं था।

जब उन्होंने मुक्केबाज बनना का निर्णय लिया था। समाज वालों और उनके रिश्तेदारों ने उनकी आलोचना की और रिंग में शाट्स पहनने पर कड़ी निंदा की। लेकिन निकहत रूकी नहीं और अपने सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत करती रही। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए उनके माता-पिता ने भी उनका हमेशा साथ दिया और समाज के तानों के बाबजूद वें हमेशा अपनी बेटी के साथ खड़े।


निकहत ने अपने सभी आलोचकों को जवाब अपने प्रदर्शन से बाक्सिंग रिंग में दिया। जहां मात्र 14 वर्ष की उम्र में वें राष्ट्रीय सब -जूनियर मीट में स्वर्ण जीतकर युवा बाक्सिंग चैंपियन बन गई। जिसके बाद उनके परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद उन्होंने तुर्की में साल 2011 में महिला जूनियर और युवा विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में फ्लाइवेट में पहली बार देश के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। साल 2011 में 15 साल की उम्र में इस मुक्केबाज ने एआईबीए महिला जूनियर और युवा विश्व चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल कर बहुत सुर्खियां बटोरी।


निकहत यहां ही नहीं रूकी उन्होंने दो साल बाद साल 2013 में बुल्गारिया में एक बार फिर मुक्केबाजी का जौहर दिखाया और महिला जूनियर और युवा विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। साल 2014 में निकहत ने 51 किलो वर्ग में सर्बिया में आयोजित तीसरे नेशन्स कप अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। उन्होंने 7 साल बाद थाइलैंड ओपन इंटरनेशनल में रजत पदक भारत की झोली में डाला। साल 2019 में बैंकाक में आयोजित थाइलैंड ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में उन्होंने रजक पदक हासिल किया।



इसके बाद सबसे बड़ी उपलब्धि उन्होंने इस साल तब हासिल की जब उन्होंने विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के फाइनल में थाईलैंड की मुक्केबाज जुतामास जितपोंग को शिकस्त देकर चैंपियनशिप अपने नाम की। उन्होंने अपने आदर्श मैरीकाॅम की तरह चैंपियनशिप में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया था। अब निकहत की निगाहें राष्ट्रमंडल खेलों पर है। जहां भी वें शानदार प्रदर्शन कर अपने देश का नाम रोशन करना चाहेगी।

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