जिन्हें हम भूल गए
हवा सिंह: वो मुक्केबाज जिसने भारत के लिए एशियाई खेलों में लगातार दो स्वर्ण पदक जीते
एशियाई खेल 2018 में भारत ने कुल 69 मेडल जीत अंक तालिका में 8वां स्थान प्राप्त किया। एशियाड के इतिहास में भारतीय टीम का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इस प्रतियोगिता में एक तरफ जहां एथलेटिक्स में भारतीय एथलवीट का बोल बाला रहा तो वहीं दूसरी तरफ मुक्केबाजी में भारत को निराशा हाथ लगी। मुक्केबाजी में भारत की झोली में 1 स्वर्ण समेत सिर्फ 2 मेडल ही आए। एशियाई खेलों में विकास कृष्णन जिनसे सबको स्वर्ण की उम्मीद थी, उन्हें इंडोनिशिया में आयोजित इस प्रतियोगिता में कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। अगर विकास यहां स्वर्ण जीत जाते तो वो हरियाणा के धाकड़ मुक्केबाज हवा सिंह की बराबरी कर लेते। हवा सिंह एक मात्र ऐसे मुक्केबाज हैं जिन्होंने लगातार 2 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते है। इसी मुद्दे पर बात करते हुए हम एक नजर डालते हैं हरियाणा के इस मुक्केबाज पर:
1) मुक्केबाज हवा सिंह का जन्म 16 दिसंबर 1937 को हरियाणा के भिवानी जिले के उमरवास में हुआ था। बता दें कि हवा सिंह हेवीवेट मुक्केबाज थे। जिनका कई दशकों तक भारत और एशिया में दबदबा रहा।
2) मुक्केबाजी में अपनी धाक जमा लेने वाले हवा सिंह को 1956 में भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया था। नौकरी पाने के 4 साल बाद ही उन्होंने उस वक्त के चैंपियन मोहब्बत सिंह को धूल चटाकर वेस्टर्न कमांड का खिताब अपने नाम किया था। इस उपलब्धि के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 1963 से लगातार 1973 तक 10 बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता अपने नाम की। उनके अलावा कोई भी मुक्केबाज इन सालों में खिताब अपने नाम करने में असफल रहा। हवा सिंह की इन उपलब्धियों को देख 1966 में भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा। वहीं 1968 में सेनाध्यक्ष ने ‘बेस्ट स्पोर्ट्समेन के खिताब से नवाजा।
3) हवा सिंह भारत के अब तक एकमात्र ऐसे मुक्केबाज हैं जिन्होंने लगातार 2 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किये थे। उन्होंने ये कारानामा 1966 औऱ 1970 एशियाई खेलों में किया था ।
4) मुक्केबाजी को अलविदा कहने के बावजूद भी हवा सिंह ने भारतीय मुक्केबाजी को आगे बढ़ाने के लिए अपनी सेवाएं जारी रखी। राष्ट्रीय टीम के कोच और चयन समीति में रहते हुए राजकुमार सांगवान और महताब ईशरवाल जैसे शनादार मुक्केबाज तैयार किए जिन्हें बाद में अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा गया।
5) भिवानी को भारतीय मुक्केबाजी का गढ़ भी कहा जाता है और इसका श्रेय सिर्फ हवा सिंह को जाता है। उन्होंने भिवानी में एक अकादमी की स्थापना की, जहां से 2008 चीन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले विजेंन्दर सिंह जैसे खिलाड़ियों का नाम शामिल है।
6) बतौर कोच उनकी उनकी उपलब्धि को देखते हुए भारत सरकार ने एक बार फिर सम्मानित करने का ऐलान किया। इस बार अर्जुन नहीं बल्कि द्रोणाचार्य अवॅार्ड से लेकिन विधि के विधान के आगे किसकी चली है। 29 अगस्त 2000 को उन्हें ये पुरस्कार दिया जाना था। लेकिन इससे 14 दिन पहले उनका स्वर्गवास हो गया। हवा सिंह भले ही नहीं रहे लेकिन भारतीय मुक्केबाजी में उनका योगदान हमेशा भारतवासियों को यादों में ताजा रहेगा।