बैडमिंटन
बैडमिंटन स्टार लक्ष्य सेन ने विपरीत परिस्थितियों से लड़कर हासिल किया राष्ट्रमंडल खेलों में अपना लक्ष्य
लक्ष्य के पिता और दादा भी बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुके हैं। वही उनके भाई उनके साथ बचपन में बैडमिंटन खेला करते थे।

बर्मिंघम में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने इस साल बेहतरीन प्रदर्शन किया और 60 से अधिक पदक जीते। इन खेलों ने इस साल देश को कई हीरो दिए। जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में लड़कर अपने देश के लिए पदक जीते हैं। एक ऐसा ही हीरो थे बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन। जिन्होंने फाइनल मैच मेें पहला सेट 19-21 से गंवाने के बाद 21-9 से दूसरा सेट जीता और फिर त्जे योंग एनजी की चुनौती को तीसरे सेट में 21-18 से खत्म कर दी और देश के लिए स्वर्ण पदक जीता।
लक्ष्य ने जिस तरह फाइनल मुकाबले में लड़कर वापसी की और देश के लिए स्वर्ण पदक जीता। ठीक उसी प्रकार उन्होंने अपने जीवन में भी विपरीत परिस्थितियों से लड़कर इस मुकाम को हासिल किया।
लक्ष्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा का रहने वाला है। लक्ष्य के दादा सीएन सेन और पिता डीके सेन दोनों बैडमिंटन के खिलाड़ी थे। लक्ष्य को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए पिता ने भारी योदगान दिया। अपना शहर छोड़ दिया और बेंगलुरु शिफ्ट हो गए।
लक्ष्य के बड़े भाई चिराग सेन भी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। लक्ष्य के पिता, प्रकाश पादुकोण अकादमी से जुड़े हैं और जिनकी देखरेख में लक्ष्य चार साल की उम्र से स्टेडियम जाने लगा था। इसके बाद 15 साल की उम्र में लक्ष्य ने नेशनल जूनियर अंडर-19 का खिताब जीतकर पहली बार सुर्खियां बटोरी। इसके बाद 17 साल की उम्र में साल 2017 में उन्होंने सीनियर नेशनल फाइनल्स खेल और खिताब जीता।
इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने जनवरी में इंडिया ओपन जीता, जो उनका पहला सुपर 500 खिताब था। जर्मन ओपन में, सेमीफाइनल में विश्व के नंबर 1 विक्टर एक्सेलसन को हराकर सेन फाइनल में हार गए। वह ऑल-इंग्लैंड चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे जिसमें वे विक्टर एक्सेलसन से हार गए। वह थॉमस कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा भी रहे थे।