बैडमिंटन
कौन है ज़्यादा बेहतर, वर्ल्ड चैंपियन पी वी सिंधु या पूर्व वर्ल्ड नंबर-1 साइना नेहवाल ?
भारतीय बैडमिंटन के दो ऐसे खिलाड़ी जिन्होंने अंतराष्ट्रीय पैमाने पर अपने हुनर का प्रदर्शन करते हुए नाम और शोहरत हासिल की है और आज आलम ऐसा है की बच्चा- बच्चा इनके नाम से बख़ूबी वाकिफ है| जी हाँ हम यहाँ हाल ही में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली शटलर पी वी सिंधु और भारत को ओलंपिक्स में बैडमिंटन में पदक दिलाने वाली पहली शटलर साइना नेहवाल की कर रहे हैं|
यह कहने की ज़रूरत नहीं की दोनों ही शटलर्स अपने अपने तरीके से बैडमिंटन जगत की रानियाँ रह चुकी हैं| पर कहीं न कहीं लोग इन दो खिलड़ियों की तुलना आये दिन करते ही रहते हैं| 29 वर्षीय साइना ने अपना करियर 8 साल की उम्र से शुरू किया था और आते ही मानो कुछ ही सालों के भीतर उन्होंने भारतीय बैडमिंटन की डूबती नैया को बचा लिया हो| दरअसल एक दौर था जब बैडमिंटन की लोकप्रियता ज़्यादा न होने के कारण लोगो का रुझान भी कम था| मगर प्रकाश पादुकोण, सईद मोदी और पुलेला गोपीचंद ने इस सूखे को बदला और भारत में बैडमिंटन का जादू चलाया| धीरे धीरे यह जादू गायब होने लगा क्योंकि बहुत कम ऐसे लोग सामने आते थे जो बैडमिंटन में अपना नाम बनाना चाहते थे| नेशनल लेवल पर तो कई शटलर्स आते जैसे अपर्णा पोपट, विमल कुमार, चेतन आनंद, पर अंतराष्ट्रीय खिलड़ियों के सामने उनका कोई ज़ोर नहीं चल पाता|
फिर एक उभरते हुए सितारे की तरह आयीं साइना नेहवाल जिन्होंने राष्ट्रीय के साथ साथ अंतराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में भी अपने खेल का जौहर दिखाया| उनका खेल अब चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों के खिलाडियों को टक्कर देना शुरू कर चुका था|
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जैसे जैसे वह आगे बढ़ीं उनको गोपीचंद ने अपनी शरण में ले लिया था और फिर क्या था साइना ने चीनी दीवार को धीरे धीरे खोखला करना शुरू कर दिया था| जिसको आज पी वी सिंधु ने लगभग पूरा ही तबाह कर दिया है| सिंधु ने भी शुरुआत से ही अपने खेल से लोगों को चौंकना शुरू कर दिया| उनकी सबसे बड़ी खासियत उनकी लंबाई रही है पर सबसे ज़्यादा नुक़साम की वजह भी वही रही है| साइना ने अपने करियर में बहुत सारे 'पहले' वाले टाइटल हासिल कर लिए पर सिंधु को वह फायदा नहीं मिला| वह हमेशा 'दूसरी' ऐसी खिलाड़ी के नाम से जनी जाती थीं| पर कड़ी मेहनत और लगन की वजह से उन्होंने कई ऐसे कारनामे कर दिखाए जो साइना ने भी नहीं किये| अब पी वी सिंधु के इस गोल्ड को ही ले लीजिये| साइना ने जो 13 सालों में नहीं किया वह पी वी सिंधु ने कर दिखाया| एक समय पर जहाँ चीन के खिलाडियों से भारतीय खिलाड़ी खेलने में कतराते थे आज सिंधु ने उन खिलाडियों को सिंगल डिजिट से हरा कर बाहर निकला| पर यहाँ प्रश्न किसी के कुछ करने या नहीं करने का नहीं है बल्कि यह है कि दोनों शटलर्स में क्या अंतर रहा है? और ये अंतर शायद समय का रहा है| जब साइन ने खेलना शुरू किया था तब चीन की तरफ से वांग यिहान, वांग लीन, ली सुरेई और वांग शिशन जैसे खिलाडियों ने भी खेलना शुरू किया था और इनकी कोच थीं 2 बार ओलिंपिक विजेता, ज़ैंग निंग जिन्होंने 5 बार वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पदक भी जीते| ऐसे समय में अपना अंतराष्ट्रीय पैमाने पर वर्चस्व बनाना बहुत बड़ी बात थी|
आज इनमे से, साइना को छोड़ कर, कोई भी खिलाड़ी एक्टिव नहीं है| सिंधु जब खेलने आयीं तो यह शटलर्स बैक फुट पर थे और ली सुरेई के आलावा कोई भी एक्टिवली नहीं खेल रहा था| ऐसे में सिंधु को खुद को स्थापित करने का काफी समय मिल गया| अभी जापान और चाइनीस तायपेई भले ही अच्छी टक्कर दे रहें हों पर उनमे वह बात नहीं जो एक समय पर उन चीनी खिलाड़ियों में हुआ करती थी|
इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की सिंधु उतना अच्छा नहीं खेलती या उनको एक आसान जीत मिली है पर उनकी यह गोल्ड जीतने की तैयारी शायद आज से 10 साल पहले ही शुरू हो गयी थी जब चीनी खिलाड़ियों ने एक ताकतवर शटलर के रूप में साइना से टक्कर लेनी शुरू की| तब चीनी खिलाड़ी साइना के खिलाफ एक ख़ास रणनीति के साथ उतरती थीं और आज कोई स्ट्रेटेजी काम नहीं करती| जितना भारतीय महिला बैडमिंटन में फर्क आया है उसके लिए साइना और सिंधु दोनों ही शटलर्स ने बहुत मेहनत की है| शुरुआत भले ही साइना ने की पर कामयाब सिंधु हुईं|
इस स्वर्ण के बाद इतना तो निश्चित है कि अब जहाँ हम सिर्फ दो खिलाड़ियों का नाम लेते हैं, आने वाले कल में यह आंकड़ा बहुत बढ़ने वाला है|