कोच कॉर्नर
मौजूदा समय में खेल के सबसे बड़े शिक्षकों में से एक हैं पुलेला गोपीचंद
आज 5 सितंबर है, यानी शिक्षक दिवस, आम भाषा में अगर कहा जाए तो शिक्षकों का दिन। शिक्षक वह होते हैं जो अपने छात्र को समझाते हैं, सिखाते हैं और उनके एक बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, और ये सब वह नि:स्वार्थ भाव के साथ करते हैं फिर चाहे वह पढ़ाई हो या फिर खेल, शिक्षकों का महत्व बहुत ज़रूरी है। आज हम एक ऐसे ही शिक्षक की बात करने जा रहे हैं जो मौजूदा वक़्त में न सिर्फ़ एक शानदार शिक्षक हैं बल्कि उन्होंने भारत को कई ऐसे छात्र दिए हैं जो देश का नाम रोशन कर रहे हैं। और इस शिक्षक का नाम है, पुलेला गोपीचंद, पुलेला ख़ुद भी एक दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुके हैं और उनके शिक्षक रहे थे प्रकाश पादुकोण जिनसे हासिल की गई शिक्षा और सीख वह अब अपने छात्रों को दे रहे हैं।
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पुलेला गोपीचंद की ख़ासियत इसी बात से समझी जा सकती है कि उन्होंने इस देश को एक या दो नहीं कई ऐसे बड़े बैडमिंटन शटलर दिए हैं, जिनसे आज भारत की पहचान हो रही है। ख़ुद जिस मुक़ाम पर कभी पुलेला नहीं पहुंचे और जिन सपनों को उन्होंने ख़ुद साकार नहीं किया था वह अब उनके छात्र कर रहे हैं और ये उनके लिए अपने सपने सच कराने जैसा है। जो ये दर्शाता है कि पुलेला गोपीचंद कितने नि:स्वार्थ भाव से अपने देश और बैडमिंटन के खेल के लिए अपना योगदान दे रहे हैं।
हैदराबाद के रहने वाले इस पूर्व शटलर की ही देन है कि हाल ही में भारत को पहला बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियन मिला। जी हां, पी वी सिंधु जिन्होंने BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा था और वर्ल्ड चैंपियन बनने वाली पहली भारतीय बनी, साथ ही साथ ओलंपिक में रजत जीतने वाली पहली महिला भारतीय बनने वाली सिंधु भी पुलेला गोपीचंद की ही शागिर्द हैं। सिंधु के अलावा भारत की तरफ़ से पहली महिला वर्ल्ड नंबर-1 बनने वाली सायना नेहवाल से लेकर पूर्व वर्ल्ड नंबर-1 शटलर किदाम्बी श्रीकांत, साई परिनीत और एच एस प्रणोय जैसे दिग्गज भारतीय शटलर भी पुलेला गोपीचंद की ही देन हैं।
गोपीचंद ने पी वी सिंधु को इस मुक़ाम तक पहुंचाने के लिए बहुत त्याग भी किया है, सिंधु या उनका कोई भी दूसरा छात्र हमेशा ये कहता है कि गोपीचंद न होते तो शायद मैं यहां नहीं होता। उन्हें जो सीख अपने गुरुओं से मिली थी, जिसमें प्रकाश पादुकोण से लेकर उनके पहले कोच हामिद हुसैन भी शामिल हैं, पुलेला भी उन्हीं चीज़ों को अपने छात्रों को भी सिखाते हैं।
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सिंधु को तैयार करने के लिए पुलेला ने कभी उनका फ़ोन भी ले लिया था और मीठे खाने पर भी पाबंदी लगा थी। असल में सिंधु को मीठा खाना और आईसक्रीम काफ़ी पसंद थी जिससे उनकी फ़िट्नेस पर असर पड़ता था, इस वजह से गोपीचंद ने उन्हें इसके लिए मना कर दिया था। फ़िट्नेस को लेकर पुलेला गोपीचंद ख़ुद भी बहुत ज़्यादा ध्यान देते हैं और आज भी गोपीचंद ने अपनी अनुशासित दिनचर्या नहीं छोड़ी है। बैडमिंटन अकैडमी में रहने के दौरान सुबह 4 बजे से ही उनका दिन शुरू हो जाता है, इस अकैडमी को उन्होंने अपना घर गिरवीं रखकर खड़ा किया था और एक कोच के तौर पर अपनी पारी शुरू की थी। एक खिलाड़ी के तौर पर गोपीचंद के जो सपने अधूरे रह गए थे, उनको अब वह अपनी कोचिंग के ज़रिए पूरा कर रहे हैं और देश को कई होनहार खिलाड़ी दे रहे हैं।
हालांकि इसके बदले में सरकार की तरफ़ से भी उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं जिसमें 2009 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड भी शामिल है जो कोचिंग के भारत का सबसे सम्मानित पुरस्कार है। इसके अलावा खिलाड़ी के तौर पर उन्हें 1999 में अर्जुन अवॉर्ड, 2000-2001 का राजीव गांधी खेल रत्न और 2005 में पद्मश्री से भी नवाज़ा जा चुका है। कुछ साल पहले ही उन्हें 2014 में पद्मभूषण से पुरस्कृत किया जा चुका है।
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भारत के इस सच्चे और मौजूदा समय के शायद सबसे बड़े शिक्षक को द ब्रिज की पूरी टीम की तरफ़ से भी शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।