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एथलेटिक्स

भारत को ट्रायथलॉन मे ओलंपिक पदक दिलाने का सपना संजोए हैं रौबिन सिंह

भारत को ट्रायथलॉन मे ओलंपिक पदक दिलाने का सपना संजोए हैं रौबिन सिंह
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Saksham Mishra

Published: 9 April 2019 11:17 AM GMT
ट्रायथलॉन के बारे मे सुना है आपने? शायद ना सुना हो। मुल्त: यह एक खेल है जो साईकिलिंग, स्विमिंग और रनिंग के समावेश से बनता है। अन्य जगहों पर इसमें कुछ परिवर्तन भी होता है पर स्टैंडर्ड फ़ॉर्मेट यही देखने मे आता है। ट्रायथलन भारत में भी धीरे-धीरे खेला जाना शुरु हो रहा है। इतना ही नहीं, हमरे देश में कुछ युवा ऐसे भी हैं जो भारत को इस खेल में ओलंपिक्स मे सवर्ण पदक दिलाने का भी सपना संजोए हुए हैं। ‘द ब्रिज’ ने बात करी ऐसे ही एक होनहार युवा रौबिन सिंह से। रौबिन सिंह हांगकांग में खेली गयी जूनियर एशियन ट्रायथलॉन चैम्पियनशिप 2018 में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे अभी केवल 18 वर्ष के हैं और ट्रायथलॉन के साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं।
"मैं राजस्थान यूनिवर्सिटी से बी.ए. कर रहा हूं। फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट हूं। पढ़ाई अच्छी चल रही है और पढ़ने का टाइम मिल जाता है। ट्राइथलॉन के साथ-साथ, मैं पढ़ाई भी करते रहना चाहता हूं क्योंकि इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आपकी एक अलग पहचान रहती है कि आप खिलाड़ी तो हो ही पर साथ में पढ़े-लिखे भी हो।" रौबिन ट्राइथलॉन के अलावा स्पोर्ट्स साइकॉलजी मे भी रुचि रखते हैं। "मैंने बी.ए. में साइकॉलजी और एकनॉमिक्स दोनों ले रखे हैं और आगे स्पोर्ट्स साइकॉलजी में पढ़ाई करना चाहता हूं। मुझे अपने गेम के बारे में वर्ल्ड वाइड न्यूज़ पता रखने का शौक है। मैं गूगल पर सर्च करता रहता हूं कहां क्या हो रहा है, नई-नई चीजें ढूंढता हूं - ट्रेनिंग, न्यूट्रिशन और इक्विपमेंट्स के बारे में।" रौबिन की ट्रायथलन की शुरुवात स्विमिंग से हुई। उनके कोच ने पहली बार उनसे कहा की उन्हें ट्रायथलॉन में हाथ आज़माने चाहिए। "ट्रायथलॉन की शुरुआत से पहले मेरी स्विमिंग की शुरुआत हुई, जब मैं चौथी कक्षा में था। 2008 में चौथी क्लास तक मैं स्विमिंग करता था, साथ में स्टेट और नेशनल भी खेलता था। फिर मैंने दो साल पहले प्रोफेशनल साइकिलिंग शुरू करी। तब मेरी 'जो सर' से मुलाकात हुई जो कि आयरन मैन है। वह बेल्जियम से हैं पर अभी जयपुर में ही हैं। वह बिजनेसमैन हैं। तो उन्होंने पूछा कि तुम स्विमिंग अच्छी करते हो, साईकिलिंग अच्छी करते हो, तुम्हारी रनिंग कैसी है? मैंने कहा, मैं रनिंग भी अच्छी करता हूं। तो उन्होंने कहा कि फिर तम्हें ट्रायथलन में अपनी किस्मत आज़मानी चाहिए।" "2017 में जयपुर में जेसीसी ने ट्रायथलॉन का एक इवेंट कराया। मैं वहाँ जीत गया। उससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली कि यह तो एक अलग सपोर्ट है, मैं इसमें और कोशिश क्यों नहीं करता हूं? फिर 2017 में पुणे में नेशनल हुए तो मैंने वहां भी अच्छा प्रदर्शन किया। वह मेरा दूसरा ही ट्रायथलन था, बिना किसी ट्रेनिंग के, बिना किसी प्रॉपर गाइडेंस के, केवल जो सर थे मेरे साथ। तो वहाँ भी अच्छा परफॉर्म करके मुझे उससे प्रेरणा मिली।"
"साइकिलिंग की ट्रेनिंग मैंने शिवराम सर से ली जो कि एक नेशनल लैवल के साइकिलिस्ट है और इस समय इंडियन रेलवेज़ में कार्यरत है। तो वहां से मैं इंडिया कैम्प के लिए सिलेक्ट हो गया। वहां पर मैं सबसे छोटा था। फिर वहां से मुझे एशियन चैंपियनशिप के लिए सिलेक्ट किया गया। पहली बार मैंने भारत को रिप्रेजेंट किया तो वहां से बहुत कुछ सीखने को मिला और मुझे लगा कि मैं यह कर सकता हूं। यह खेल मेरे लिए ही है।"बातचीत के दौरान कुछ हल्के-फुल्के पलों मे रौबिन ने हमें बताया की वो ट्रायथलॉन के बारे मे लोगों को कैसे समझाते हैं।"ट्रायथलॉन कोई बहुत ज्यादा पॉपुलर खेल नहीं है, खासतौर से भारत में। मुझसे कोई पूछता है तो मैं कह देता हूं अगर आपने 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' देखी है तो उसमें जो होता है आखिर में, वही ट्रायथलॉन होता है। उससे लोगों को थोड़ा आईडिया लग जाता है कि क्या है। उस फिल्म में बेसिक तो ठीक ही दिखाया है।"अपने माता-पिता के बारे मे बताते हुए रौबिन उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे।"मेरे माता-पिता भी स्पोर्टस से जुड़े रहे हैं। मेरे पिताजी नेशनल हॉकी प्लेयर हैं। वह अब भी अपने ऑफिस की टीम के लिए खेलते हैं। मेरी मां एक बैडमिंटन प्लेयर हैं। उन्होंने भी नेशनल खेला हुआ है। मेरे पेरेंट्स मुझे बहुत ज्यादा सपोर्ट करते हैं और यही एक वजह है कि मैं यह कर पा रहा हूं। उन्हें मुझ पर काफी विश्वास है और सबसे बड़ी बात है कि वह मेरे से बदले में यह नहीं कहते हैं कि उन्हें रिजल्ट चाहिए।"रौबिन खेलों मे सफलता के लिये डाइट और न्यूट्रिशन को भी काफ़ी तवज्जो देते हैं।

"आपका खान-पान, आपका डाइट और न्यूट्रिशन बहुत ही अहम स्थान रखता है किसी भी स्पोर्टसपर्सन के लिए क्योंकि अच्छा खाओगे, हेल्थी खाओगे तो आपकी बॉडी रिकवर जल्दी हो जाती है, इंजरीज़ के चांसेस कम हो जाते हैं। जैसे लोग कहते हैं कि टैंक एम्प्टी हो गया, तो ये तब कहते हैं कि अब कुछ बचा नहीं शरीर में। जितना बेहतर आप खाना खाएंगे, उतना बेहतर आप इंजरीज़ से लड़ सकते हैं। फास्ट ऐण्ड अप मुझे काफी मदद कर रहा है। उनके सप्लीमेंट काफी अच्छे हैं- रीलोड, स्पोर्टइफ़ायी, इलेक्ट्रोलाइट्स, ओमेगा वगैरह, पूरी किट है, जिससे मुझे काफी मदद मिलती है।"

आखिर में रौबिन सिंह ने अपना सपना भी हमसे साझा करा। "हर एथ्लीट का सपना होता है कि मैं ओलंपिक्स में जाऊं, अपने देश का झंडा ऊपर करुँ, नेशनल एंथम आए पर मेरा ऐसा मानना है कि जब तक मैं खेल को इंजॉय कर रहा हूं और साथ ही साथ मैं इंप्रूव होता जाऊँ, इंडिया को रेप्रजेंट कर सकूं वर्ल्ड चैंपियनशिप्स में, ओलंपिक्स में, तो मैं अपने आपको सफल मानूँगा।" रौबिन, आप इसी तरह मेहनत और लगन से अपने सपने की ओर अग्रसर होते रहें। हमारी शुभकामनाएं।
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